रिश्तों की 2 नई परिभाषा – वर्चुअल और अडॉप्टेड रिश्तें| Virtual and Adopted Relationship

रिश्तों की नई परिभाषा - वर्चुअल और अडॉप्टेड रिश्तें

हमारे जन्म के साथ ही जुड़ जाते है हमारे रिश्तें। रिश्तों को परिभाषित करना आसान होता है परन्तु श्रेणीबद्ध करना बहुत मुश्किल। पहले रिश्तें दो तरह से श्रेणीगत किये जाते थे –

  1. जन्म से जुड़े रिश्तें
  2. कर्म से जुड़े रिश्तें

जन्म से जुड़े रिश्तों में आते थे हमारे पारिवारिक और सामाजिक रिश्तें; जैसे माता-पिता, भाई-बहन, बुआ, चाचा, दादा-दादी, नाना-नानी, पति-पत्नी और अन्य।

कर्म से जुड़े रिश्तों में आते थे हमारे व्यवहारिक और व्यवसायिक रिश्तें जैसे गुरु-शिष्य, मित्र, पड़ोसी, साहब-नौकर, सेवा प्रदाता और अन्य। सोनम के शब्द आज बात करेंगे नए युग के नए रिश्तों की

रिश्ता चाहे जो भी हो; हर रिश्तें का अपना अलग महत्व होता था भी और है भी। परन्तु आज के सोशल मीडिया वाले युग में रिश्तों की कुछ और श्रेणियाँ बन गयी है और वो है –

  1. वर्चुअल (आभासी) रिश्तें
  2. अडॉप्टेड (अपनाये) रिश्तें

वर्चुअल रिश्तें Virtual Relationship

वर्चुअल (आभासी) रिश्तें Virtual Relationship

वर्चुअल रिश्तें वो होते है जो हम आजकल ज्यादा दिल से निभाते है यानि की व्हाट्सप्प, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, टिंडर आदि पर बनाये हुए रिश्तें। जिनसे मिलना तो कम या कभी-कभार ही होता है परन्तु मान-सम्मान, रूठना-मनाना, बधाई, अभिनन्दन और प्रतिक्रियाएं पूरी होती है। ये रिश्तें आपके पारिवारिक सदस्यों से भी हो सकते है, मित्रो-पड़ोसियों, जान-पहचान वालो और अनजाने लोगो से भी हो सकते है ।

यक़ीन मानिये इन रिश्तों में सबसे ज्यादा दबाव होता है। मैसेज पढ़ के रिप्लाई ना करना, सामने वाले द्वारा भेजा गया फोटो या वीडियो देख कर भी कमेंट, लाइक या रिप्लाई ना देना; ज्यादा घातक हो सकता है बजाये इसके की आप प्रत्यक्ष रूप से उत्तर ना दे। व्हाट्सप्प का एक फीचर है जिसमें सामने वाला आपकी उपस्तिथि देख सकता है या ये भी देख सकता है की आप ने पिछली बार व्हाट्सप्प कब चलाया था, इसके चलते वो आपको कॉल करे, और आप ना रिसीव करे तो सामने वाला क्या अनुमान लगाएगा ये तो आप सोच ही नहीं सकते।

कई बार असल ज़िन्दगी में मन-मुटाव का कारण वर्चुअल सम्बन्धो में गर्म-जोशी ना दिखाना हो जाता है। ये विचित्र किन्तु सत्य है।इन रिश्तों में कई बार स्वार्थ भी छुपा होता है। जैसे बॉस को खुश करने के लिए उनकी साँझा की हुई तस्वीर पर ना चाहते हुए भी लाइक करना।

अडॉप्टेड रिश्तें Adopted Relationship

एडोप्टेड रिश्तें Adopted Relationship

अब आते है अडॉप्टेड रिश्तों पर। ये वो रिश्तें होते है जो जिन्हें हम सोचने-समझने के बाद, देख-परख कर खुद में कमी या सामने वाले में कमी होने के बाद भी स्वीकार करते हैं। इन रिश्तों में कोई दबाव नहीं होता है। जैसे निसंतानता की स्तिथि में किसी गरीब व अनाथ बच्चे को गोद लेना। इस परिस्तिथि में आप बच्चा न होने की कमी के कारण एक ऐसे बच्चे को गोद लेते है जो आप के जीवन का खालीपन तो भरेगा ही साथ ही उस अनाथ बच्चे की परवरिश भी हो जाएगी।

ब्रह्माण्ड सुंदरी सुष्मिता सेन ने दो लड़कियों रेनी और अलीशा को क्रमशः वर्ष २००० और २०१० में अडॉप्ट किया था। रवीना टंडन सिर्फ 21 साल की थीं, जब उन्होंने दो बेटियों छाया और पूजा को गोद लिया था। एक एकल माँ के रूप में उनकी परवरिश करने के बाद, रवीना ने फिल्म वितरक, अनिल थडानी से शादी की और उनके साथ दो बच्चे, राशा और रणबीर हैं। छाया और पूजा दोनों की अब शादी हो चुकी हैं।

नायक मिथुन चक्रवर्ती ने एक बच्ची को गोद लिया है जो गली के कूड़ेदान में पाई गई थी। मिथुन के दिशानी को गोद लेने से पहले ही तीन बेटे, नमशी, रिमोह और मिमोह हैं। निर्देशक और लेखक कुणाल कोहली और उनकी पत्नी रवीना एक साथ अपनी दत्तक बेटी राधा की परवरिश कर रहे हैं।

ऐसे कई उदहारण मिल जायेंगे जहाँ अडॉप्टेड रिश्तों में खुशियां देखी जा सकती है। ये तो थे बच्चो को अडॉप्ट करने के उदहारण अब आपको वाकिफ करवाती हूँ कुछ ऐसे अडॉप्टेड रिश्तों से जहाँ बच्चे नहीं बड़ो को अडॉप्ट किया गया है और इसकी वजह स्वार्थ नहीं प्रेम है। एसिड अटैक की शिकार लक्ष्मी अग्रवाल से शादी करने का पत्रकार से सामाजिक कार्यकर्ता बने अलोक दीक्षित का साहसिक निर्णय आज भी सराहनीय है। आज लक्ष्मी और अलोक की एक बेटी भी है।

इसी तरह एसिड अटैक सर्वाइवर ललिता बेन बंसी की शादी राहुल कुमार से होना भी अडॉप्टेड रिलेशनशिप का एक उदहारण है। इनके विवाह के मौके पर एक्टर विवेक ओबेरॉय ने इन्हे एक फ्लैट तोहफे में दिया था और डिजाइनर जोड़ी अबू जानी और संदीप खोसला ने हार भेंट किया था।

अडॉप्टेड रिश्ते मन की सच्चाई से जुड़े होते हैं। ऐसे रिश्तों को हम अपनाने के साथ जिंदगीभर संभालने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं।

रिश्तें निभाना भी एक कला है Being in Relationship is an Art

रिश्ते चाहे निजी जीवन में बने हो या सोशल मीडिया पर; उन्हें सहेज कर रखना भी एक कला है। ऐसा माना जाता है की रिश्तें बनाना आसान है, उन्हें सदैव निभाना मुश्किल। बात चाहे निजी रिश्तों की हो या व्यवसायी रिश्तों की; किसी भी रिश्तें की नींव व्यवहार, विचार और समझ से रखी जाती है। रिश्ते तभी कामयाबी से निभते है जब  आप सामने वाले की हर बात को सही और सरल रूप में समझ सके। इसके लिए आप को अपनी सोच और समझ का दायरा बढ़ाना है तभी आप का रिश्ता कामयाब होगा।

मैं अपने रिश्ते के बंधन को कैसे मजबूत करूं? How do I make my relationship bond stronger?

किसी भी रिश्तें की मजबूती का आधार होता है उसमें दिया हुआ समय और विश्वास। निजी जीवन के रिश्ते सोशल मीडिया पर बने रिश्तों से अलग होते है। सभी रिश्तों में यह जरूरी है कि उन में समझदारी और ईमानदारी बरती जाए। बात सोशल मीडिया की हो या निजी जीवन की औरो को उतना ही दिखाएं जितना जरूरी है। अपेक्षा कम करें, उपेक्षा से बचे और समय-समय पर फ़ोन कर के या चिट्ठी लिख कर फ़िज़ूल के मन-मुटाव से बचे।

रिश्तों में साफगोई होना ज़रूरी है पर इतनी भी नहीं की आप सामने वाले का दिल ही दुखा दे। कोशिश हमेशा ये करे की जो नज़दीक में है उनसे मिलना होता रहे और जो दूर है उनसे बातें होती रहे। किसी भी बात को मन में रखने की बजाये सामने वाले से कह से उसका निराकरण करे।


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