असफलता राह रोकती नहीं; उसे सशक्त करती है


नमस्ते पाठकों 🙏🏻वर्ष 2021 का तीसरा महीना मार्च शुरू हो चुका है। ये महीना अपने साथ लाया है-

  • 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
  • 29 मार्च को होली 
  • 30-31 मार्च को सभी बैंक की वित्तीय वार्षिक लेखाबंदी

और सबसे महत्वपूर्ण भारतीय शैक्षणिक कैलेंडर में परीक्षाओं और नतीजों का दौर।ये ब्लॉग; मुख्य तौर पर लिखा गया है परीक्षार्थियों, अभिभावकों और शिक्षकों के लिए। परंतु इसमें लिखी गयी बात रोज़मर्रा के जीवन में भी प्रभावशील है।अक्सर देखने में ऐसा आता है की यदि कोई विध्यार्थी किसी क्लास में फैल हो गया तो माता-पिता उसका स्कूल बदलवा देते है; या फिर स्कूल में किसी विषय में फैल या कमजोर होने पर हम कॉलेज में उस विषय को पढ़ने के लिए नहीं चुनते है; व्यवसाय में नुक़सान होने पर उसे बंद कर के दूसरा चालु करने का सोचते है; या फिर एक बार रसोई में जो व्यंजन बिगड़ गया उसे दोबारा बनाना नहीं चाहते… क्यूँकि आप उसमें असफल हो गए थे। हम सभी जीवन में कभी ना कभी असफल ज़रूर होते है। उस समय अपनी असफलता से निराश होकर रुकने की नहीं उससे सिख कर आगे बढ़ने की ज़रूरत होती है। ये कहानी है मेरी असफलता से सफलता के सफ़र की।

असफलता की परिभाषा

जी हाँ; सफलता को तो सभी परिभाषित कर सकते है। इसीलिए मैं यहाँ असफलता को परिभाषित करने का प्रयास कर रही हुँ। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में असफलता वह क्षणिक पड़ाव होता है जहाँ पर उसे स्वयं से निराशा मिलती है और यहीं से उसकी सफलता की राह निश्चित होती है। बशर्ते वो सिर्फ़ असफलता को देखें और उससे सीखें। ये नहीं सोचे कि उसकी असफलता पर लोग क्या कहेंगे? और वे अन्य बातें जो उसे आगे बढ़ने से रोकेंगी।तो जैसा कि मैंने परिभाषित किया है की क्षणिक पड़ाव होती है असफलता इसीलिए उस पर ज़्यादा समय व्यतित नहीं करना चाहिए। 

स्नातक से डॉक्टरेट तक का सफ़र 

स्नातक का उतार-चढ़ाव 

बात उन दिनो की है जब मैं शासकीय होलकर (आदर्श, स्वसाशी) विज्ञान महाविद्यालय, इंदौर से B.Sc. (Electronics) की पढ़ाई कर रही थी। फ़र्स्ट समेस्टर अच्छे अंको से उत्तीर्ण करने के बाद सेकंड समेस्टर में 5 में से 3 विषयों में उत्तीर्णांक नहीं ला पाई; नतीजतन मुझे एक पूरा साल पिछड़ना पड़ा, सेकंड समेस्टर दोबारा से देने के लिए। एक ऐसे परिवार में जहाँ अपने ज़माने में पापा-काका M.Com, चाचा M.Sc. Agriculture Gold Medallist, माँ B.Sc. Home Science, काकी-चाची B.A.; पूरा एक साल पिछड़ना बहुत बड़ी बात थी। स्कूल के समय से ही मैं क्लास के top 5 में आती थी; ऐसे में मेरी पढ़ाई को लेकर सभी लोग निश्चिंत थे पर उस साल जो हुआ उसने मुझे भी चिंतित कर दिया। बहरहाल 3-4 दिन अफ़सोस मानने के बाद जब इस सदमे से उभरी तो माँ मुझे एक गुरुजी के पास ले गयी जो ज्योतिष विज्ञान से संबंध रखते है। उन्होंने मेरे जन्मदिनांक और जन्म समय पुछ कर कुछ गणना करी जिसके अनुसार मुझे विज्ञान संकाय से पढ़ना ही नहीं चाहिए और मेरे लिए वाणिज्य संकाय से पढ़ना ज़्यादा उचित होगा। जब आपका समय ख़राब होता है तो आप सबकी मान लेने ही भलाई समझ लेते हो। 2-3 दिन विचार करने के बाद मैंने भी मान लिया की मैं विज्ञान संकाय से नहीं पढ़ सकती जबकि मैंने 11th-12th विज्ञान संकाय से ही उत्तीर्ण किए थे। ख़ैर; बहुत पक्के मन से होलकर से स्थानांतरण लेने के लिए ऐप्लिकेशन दी। 2 घंटे में हाथ में TC थी और मैं फिर से 12वी पास बन गई थी। साल बर्बाद ना हो इसीलिए इंदौर के ही एम.के.एच.एस. गुजराती गर्ल्ज़ कॉलेज में अड्मिशन लिया क्यूँकि वहाँ समेस्टर सिस्टम नहीं था और वार्षिक परीक्षाओं के लिए मेरे पास 6 महीने का समय था। पूरी प्रक्रिया में मेरी माँ मेरे साथ छाँव की भाँति खड़ी रही।
उस रात जब हम बस से इंदौर से देवास लौट रहे थे माँ ने अपने बचपन के कुछ क़िस्से सुनाए। घर पहुँच कर रात बड़ी अनमनी सी कटी क्यूँकि अभी भी मैं वाणिज्य संकाय से पढ़ने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पा रही थी। अगली सुबह मैंने सीधे पापा से बात करी और पूरे आत्मविश्वास के साथ ये कहा की पापा कामर्स पढ़ना मेरे बस का नहीं और ये मेरी छवि के साथ मैच भी नहीं करेगा। मुझे साइयन्स ही पढ़ना है और मैं B.Sc. (Electronics) ही पढ़ूँगी। मैं ख़ुशक़िस्मत हुँ की पापा मान गए। एक और दिन माँ ने ऑफ़िस से छुट्टी ली और पहले हम गए एम.के.एच.एस. गुजराती गर्ल्ज़ कॉलेज में अड्मिशन विध्ड्रॉ करने। यक़ीन मानिए पूरी फ़ीस वापस हो गई बिना कुछ भी कटे। आधी जंग जीत गए। इसके बाद होलकर कॉलेज पहुँचे और ऐप्लिकेशन दी की अड्मिशन वापस चाहिए और फ़र्स्ट समेस्टर से आगे बढ़ना है। बात वहाँ के Director तक पहुँची; उन्होंने अपने कक्ष में बुलाकर पूरा क़िस्सा सुना और मुझसे कहा, “बेटा बहुत बड़ा रिस्क लेने जा रहे हो पर मैं तुम्हारी हिम्मत के लिए तुम्हें आगे बढ़ने की मंज़ूरी देता हुँ।” सब कुछ फिर से पहले जैसा हो गया; और जिस तरह से हुआ मुझे लग रहा था जैसे कोई मुझसे कह रहा हो तुम्हें Electronics की लैब में सर्किट बनाने है; आगे बढ़ो। बहरहाल मेरे पास आगे 6 महीने थे, समय व्यर्थ नहीं गँवाना चाहती थी इसीलिए पापा के कहने पर Diploma in Computer Science का 6 महीने का कोर्स कर लिया। 6 महीनो के बाद मैं वापस B.Sc. (Electronics) की छात्रा थी। साथ वाले आगे बढ़ गए, जून्यर्ज़ क्लैस्मेट बन गए, लोगों के सवाल ये सब मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता था। जो मायने रखता था वो था मेरा पढ़ना और आगे बढ़ना। 

MBA का दौर 

उस एक ठोकर के बाद मैंने ना कभी पीछे मुड़ के देखा और ना कभी रुकी। ग्रैजूएशन के बाद सेल्फ़ स्टडी कर के MBA एंट्रन्स इग्ज़ैम्ज़ दिए। अच्छे अंक मिलने पर Prestige Education Society of Prestige Group of Industries के Prestige Institute of Management Dewas में अड्मिशन मिल गया। घर में रह कर पढ़ने का सबसे बड़ा फ़ायदा ये है की आपको रोज़ माँ के हाथों का बना खाना खाने को मिलता है 😂। 

कमाई के साथ पढ़ाई 

MBA ख़त्म होते ही मुझे Dewas में ही Soham Institute of Management में बतौर Lecturer नौकरी भी मिल गयी। पर मेरी उड़ान इससे ऊँची थी; 6 महीने वहाँ काम करने के दौरान मैं लगातार बड़े colleges में अप्लाई करती रही और एक दिन वो हुआ जिसने मुझे upgrade कर दिया। Indian Institute of Management Indore (IIM) से मुझे Academic Associate के पद के लिए e-mail आया। वहाँ चयन होने के बाद मैंने 3 साल मन लगाकर काम सिखा भी और किया भी। Research की ABCD वहीं पूरी समझी। वहीं काम करते हुए मैंने Institute of Management Studies, Devi Ahilya University से M.Phil. के लिए एंट्रन्स इग्ज़ैम दिया और  कमाल हो गया। अब सवाल था की M.Phil. की क्लैसेज़ अटेंड करने कैसे जाया जाएगा क्यूँकि मैं तो IIM में full-time जॉब कर रही थी। एक दिन हिम्मत कर के अपने Reporting Professor से बात करी और क़िस्मत की धनी मैं; वे मान गए। अगले 6 महीने बहुत भारी थे। सुबह 7 बजे देवास से निकलती, 8:10 पर विजय नगर से IIM के लिए स्टाफ़ बस लेती। 9:00 बजे IIM पहुँच कर वहाँ अपने काम करती फिर 4:00 बजे शटल से IMS आती वहाँ coursework की क्लैसेज़ अटेंड करती फिर 7:00 बजे देवास के लिए निकलती और 8:00 बजे घर 🙄 इतनी मेहनत के बाद जब आप बैच टॉपर बनते हो ना तो उस रात नींद आती ही नहीं है। 

PhD करने का निर्णय 

M.Phil टॉप कर के लगा अब नाम के आगे Dr लगा लिया जाए तो कैसा होगा? फिर से पढ़ाई शुरू करी PhD एंट्रन्स इग्ज़ैम की। और मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती इसको चरितार्थ करती हुई मैं PhD एंट्रन्स इग्ज़ैम, Synopsis submission और RDC सब एक ही बार में क्लीर करती गई। PhD का coursework शुरू हुआ और उसकी क्लैसेज़ होती थी Saturday Sunday को सुबह 10:00 – शाम 6:00 बजे तक। इसी दौरान शादी हो गई। coursework का इग्ज़ैम देने अब की बार देवास से इंदौर नहीं जबलपुर से इंदौर आना पड़ा। उस इग्ज़ैम के क्लीर होते ही थीसिस लिखने में लग गई। 70% लिटरेचर ढूँढने का काम मैंने शादी से पहले IIM में रहते हुए कर लिया था; अब बारी थी उसे पढ़ने की और फ़्लॉज़ ढूँढने की। अपनी स्टडी पर काम करते हुए ही मेरा चयन State Forest Research Institute Jabalpur में Research Associate के पद पर हो गया। यहाँ 1 साल मध्य प्रदेश के जंगल और उनके बारे में जाना। इसके बाद रायपुर बस गए। फिर बस पूरे मन से अपनी थीसिस पूरी करी और नवंबर 2019 में सबमिट कर दी। कोरोना के चलते अंतिम प्रेज़ेंटेशन और viva एक साल देरी से हुए। और पिछले साल अपने बेटे का पहला जन्मदिन मानने के एक हफ़्ते पहले वो पड़ाव भी पार कर लिया। 18 दिसंबर 2020 को मैं डॉक्टरेट की उपाधि पा गई।
ये सब यहाँ लिखने के पीछे मेरा उद्देश्य ये बताना है की कोई भी असफलता आपको निराश कर सकती है पर आपकी राह नहीं रोक सकती। 

मेरा निवेदन

सभी अभिभावकों और शिक्षकों से बस इतना है की अगर आपका बच्चा किसी विषय में या परीक्षा में कम अंक लाता है तो उसे इस बात का यक़ीन दिलाए की आगे रास्ते और भी है। कभी भी अपने बच्चों पर पढ़ाई के लिए इतना दबाव ना बनाए की वो महज़ पास होने और अच्छे अंकों के लिए पढ़ना शुरू कर दे। 

सार यह है कि-

असफलता को अगर आप सकारात्मक रूप में देखेंगे तो वो आपको आगे बढ़ने में मदद करेगी और आपकी राह सशक्त करेगी। दृष्टिकोण बहुत मायने रखता है जब भी आप असफल होते है। हमेशा अपनी हार, नुक़सान, और अनुत्तीर्णता से सबक़ लेकर आगे बढ़ने का प्रयास करे। उन ग़लतियों से सीखे जिनसे आपको नुक़सान हुआ था। देखें और विचार करें की कमी कहाँ रह गई थी और फ़िर से निरंतर प्रयास करते रहे जब तक की सफ़लता हाथ ना लग जाए। 
इस बार के लिए बस इतना ही…अगले ब्लॉग के साथ जल्दी मिलते है… तब तक के लिए शेयर करे और पढ़ते रहे। 
और हाँ, अगर आप भी ऐसा कोई क़िस्सा सबसे साँझा करना चाहते है तो कॉमेंट बॉक्स आपका इंतज़ार कर रहा है।


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