बाँटने से बढ़ता ही है…


मेरे पाठकों को मेरा प्रणाम और प्यार !

आपके बिना सोनम के शब्द मात्र शब्द ही रहेंगे। उनके अंदर छुपे भावों को समझने वाला कोई नहीं होगा। इसलिए जैसे Customer is King वैसे मेरे लिए पाठक परमात्मा है। 

पिछलें दिनों मुझसे बहुत लोगों ने पूछा की सोनम के शब्द सिर्फ़ रसोई तक ही क्यों सीमित है? जब जवाब देने गयी तो सोचा सवाल तो सही है; रसोई के बाहर भी मेरी अपनी दुनिया, मेरी सोच और मेरे विचार है जिन्हें भी सोनम के शब्दों में ढाला जा सकता है तो आज से शुरू करते है एक और नया सिलसिला; सिलसिला जीने की कला का… 

हालाँकि खुद मैंने अब तक 33 सावन देखे है पर वो कहते है ना इंसान जितना खुद से सीखता है उतना किताबों से नहीं तो उसी सीख और सोच को यहाँ पिरोया जाएगा।

तो आज का विषय है – 

बाँटने से बढ़ता ही है

आपसोच रहे होंगे बाँटने से बढ़ेगा कैसे; कम हो जाएगा। जी नहीं; मैं बताती हूँ बाँटने से बढ़ेगा कैसे?

मान लीजिए आपने कोई सफ़लता प्राप्त करी, या आपके घर में कोई आयोजन है या फिर आपकी सालगिरह या कोई और महत्वपूर्ण पढ़ाव है; अब आपने सोचा इस महँगाई के ज़माने में क्यों किसी को बुलाकर ख़र्चा करना; हम अपना बनाए, खाए और आनंद उठाए। परंतु इसके विपरीत आपने सोचा क्यों ना मेहमाननवाज़ी करी जाए या किसी ऐसी जगह जाया जाए जहाँ जरूरतमंद लोग मिलेंगे जैसे आश्रम या अनाथालय तो इसके बदले में आपको मिलेगा-

१. ख़ुशियाँ बाँटने वाला कोई और भी

२. आपके काम की तारीफ़ होगी तो ख़ुशी और बढ़ेगी

३. थोड़ा समय अपने मित्रों और परिचितों के साथ बैठ कर सुकून मिलेगा वो अलग…

चलिए मान लिया अब आप कह रहे है की हमको तो बाहर जाना था ख़ाने अपनी ख़ुशी मनाने तो बतायिएगा जहाँ २ लोग खा रहे वहाँ अगर २ ऐसे लोग और खा लेंगे जिन्हें जाने कितने दिनो से भरपेट भोजन नहीं मिला तों कौन सी बड़ी बात हो जाएगी? मैं ये नहीं कह रही हुँ की आप भंडारा आयोजित करे पर ज़्यादा नहीं तो २ लोगों का पेट तो भर सकते है। आपको अगले दिन फिर अपने घर में ख़ाना मिल जाएगा पर ज़रा उस मुस्कान के बारे में सोचिए जो आपके दिए हुए खाने को खाकर किसी भूखे के चेहरे पर आएगी। 

आप सोच रहे होंगे की सब कहने की बात है; बाँटने से ऐसे बढ़ता तो सब दानदातार बन जाते।

तो चलिए मैं आपको प्रकृति से इसका उदाहरण लेकर देती हुँ-

कभी देखा है समुद्र को सूखते हुए? सूखती है नदियाँ, नहरें, ताल और झरने क्योंकि ये भी अपने आप में सीमित रहते है। और दूसरी तरफ़ समुद्र सबको अपनी बाज़ुएँ खोलकर स्वीकारता है इसीलिए वो हमेशा पानी से सराबोर रहता है।

सूर्य और चंद्रमा को भी देख लीजिए... अकेले रहते है पर अपनी रोशनी सभी में बाँटते है। इसीलिए वो पूजनीय भी है। 

पेड़ों को देखिए... उनका तो पूरा जीवन ही बाँटने में लगा रहता है।फल, फूल, छाँव, लकड़ी, ऑक्सिजन इत्यादि… 

तो बात बस इतनी सी है की बाँटने से बढ़ता ही है फ़िर वो चाहे ज्ञान हो या प्रेम, सम्मान हो या साथ…

चलिए आज इसे पढ़ने के बाद मात्र एक हफ़्ते के लिए आप ये आदत अपनाइए की जो कुछ भी आपके बस में होगा समय, साथ, ख़ुशियाँ, ज्ञान, ख़ाना या डेटा पैक ही सही जिसे भी ज़रूरत होगी या जिसे भी आप चाहेंगे उसके साथ बाँटेंगे।

इसे एक प्रयोग (Practical) की भाँति करे और कॉमेंट बॉक्स में ज़रूर बताए की आपको कैसा लगा ये कर के।

अगली बार जल्दी मिलते है… 

तब तक के लिए बाँटते रहिए बढ़ाते रहिए…


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One Comment on “बाँटने से बढ़ता ही है…”

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